Saturday, November 1, 2014

नौ साल वनवास





मैं बहुत  खुश हूँ, और मेरी ख़ुशी का राज़ ये है की नौ साल बाद मेरे दरवाज़े खुले हैं, मऊ साल बाद मेरे आँगन में फिर से बच्चों की किलकारी गूंजी है, मैं खुश हूँ की मेरे अपनों ने नौ साल बाद मेरी सुध ली है.



अरे मैं अपना परिचय देना तो भूल ही गया. मैं..... २६ राजेंद्र नगर,  ज़मीन के उस टुकड़े का पता है जिस पर मैं खड़ा हूँ पर इस घर के सदस्यों  लिए मैं सिर्फ एक पता नहीं अपितु एक बंधन हूँ जिस से दूर रह कर भी सब बंधे हैं, मैं वो एहसास हूँ जो कोई माने या ना माने पर दिल में बसता है, हाँ मैं मकान नहीं… एक घर हूँ.



कुछ व्यक्तिगत कारणों से नौ साल पहले मुझे बंद कर दिया गया था, तब मुझे लगा ये कुछ दिनों की बात होगी, मेरे बच्चे मेरे दरवाज़े जल्दी ही खोल देंगे पर ऐसा हुआ नहीं, कुछ दिनों का इंतज़ार पहले हफ़्तों में बदला फिर महीनों और फिर सालों में बदल गया..... मैं उम्मीद खोने लगा, मुझे लगा की मेरे दरवाज़े  शायद अब कभी नहीं खुलेंगे, शायद मुझे यूँ ही किसी और के हाथों बेच दिया जायेगा।
पर एक दिन अचानक मेरे अपनों ने मेरे  दरवाज़े खोले, मेरी सफाई की, मेरी दीवारों पर रंग रोगन कराया, मेरे आँगन और मंदिर में दीप जलाया।



मेरे आँगन में सब आये, भगवान श्री सत्यनारायण की का  आयोजन हुआ, मेरे आँगन में शंखनाद गूंजा, सालों बाद मेरी दीवाली इस बार अँधेरी नहीं थी,  मेरे आँगन में रोशनी थी, दीप जले थे, पटाखे जलाये गए थे.



मेरी उम्मीद फिर जगी है, आशा है पुराने दिन वापस आएंगे, मेरे दरवाज़े फिर हमेशा के लिए खुल जाएंगे, मेरी छत पर फिर पतंगबाज़ी के दौर होंगे, बड़ी पापड़ बनेंगे, मेरे आँगन में फिर day-night  क्रिकेट होगा, उंच नीच और stapu खेला जाएगा, मेरी रसोई का चूल्हा फिर जलेगा और बच्चों के लिए एक ही थाली में भोजन परोसा जाएगा, मेरी बैठक में मेहमानों का आना जाना फिर पहले की तरह होगा, मैं जानता हूँ इतनी जल्दी तो ये सब न हो पायेगा पर हाँ उम्मीद है की एक दिन सब कुछ फिर पहले जैसा हो जायेगा, गुज़रा हुआ वक़्त लौट आएगा।

हाँ........ थोड़ा बदले हुए रूप में.

Thursday, May 19, 2011

बारिश


बारिश


कल यहाँ बारिश हुई, अमूमन इन दिनों में यहाँ बारिश नहीं होती पर कल हुई, थोड़ी सी बेमौसम…. पर बारिश अजीब है, थोड़ी हो या ज्यादा मौसम खुशनुमा कर ही जाती है. सड़कें, पेड़, छत्त, आँगन सब धुल जाता है, साफ़ और ख़ूबसूरत हो जाता है, ऐसा लगता है किसीने नयी धुली चादर बिछा दी हो, जैसे रात भर रोयीं आँखें सुबह उठ कर पनीली और सौंधी हो जाती हैं.


बारिश के मौसम से मेरा रिश्ता अजीब है, बारिश कभी माँ की तरह लगती है जो बादलों के शोर से डराती, डांटती है, मुझे मेरी गलतियों पे समझाती है

कभी एक खास दोस्त जो मेरे साथ हर दुःख हर problem में रोता है और वो भी ऐसे की मेरा दुःख भी छुपा लेता है और उसके इस प्यार की बौछार में नहा कर मैं सारे दुःख भूल जाती हूँ
कभी मेरे भाई सा बदल मुझे छेड़ता है, उमड़ घुमड़ कर छाता है, अँधेरा कर मुझे डरता है, और बिन बरसे चिड़ा कर चला जाता है

कभी आने वाले उस प्रियतम की तरह हवाएं मचलती हैं, मेरी लटों को छु जातीं हैं और धीरे से कान में प्यार का कोई गीत सुनातीं हैं और कहतीं हैं इंतज़ार करो मैं यहीं हूँ आऊंगा और तुम्हे उड़ा ले जाऊंगा


ये रिश्ता जो कभी मैं भी समझ नहीं पाती
पर बारिश में बरसती हुई बूंदों के साथ नाचना आज भी अच्छा लगता है, बारिश के बाद हर चीज़ से उठती हुई सौंधी सी खुशबू बहुत प्यारी लगती है, दिल करता है इस खुशबू को किसी बोतल में बंद कर हमेशा के लिए अपने पास रख लूँ


बारिश के बाद छत्त पर घंटों खड़े रह कर धुली नयी धरती के चादर को देखना, बादल के बदलते रंग रूप और अकार देखना ठंडी नर्म हवाओं को गले लगाना बहुत पसंद है.
बारिश मुझे कभी मेरी सहेली जैसी लगती है, कभी प्रियतम, कभी माँ सी…… अजीब रिश्ता है बारिश का मेरे साथ……………..

Monday, May 16, 2011

26 राजेंद्र नगर













मैं
आज उस दरवाज़े के बाहर खड़ी थी, जसके अन्दर बच्चपन का एक बहुत ख़ूबसूरत वक़्त गुज़रा था




26
राजेंद्र नगर- मैंने ताला खोलने के लिए हाथ बढाया तो दिल की धड़कने तेज़ हो गयीं थीं, मैं सालों बाद घर में जा रही थी, दरवाज़ा चरमराता सा खुल गया, सामने एक पुराना सा सोफा और एक तखत पड़ा हुआ था, ये वही तखत है जिसपे ना जाने कितनी रचनाएँ लिखीं गयीं, जिसके गद्दे के नीचे से निकले सिक्के कभी हम बच्चों की विरासत हुआ करते थे, उन्ही सिक्कों को ले कर हम साहू की दुकान से कभी kismi bite तो कभी parle orange candy लेने जाते थे।

जी हाँ इसी तखत पर कभी मेरे बाबा हुआ करते थे. अपने आप में एक बहुत अच्छे कवि, बाबा की लिखी हुई कविताओं का संग्रह आज भी मेरे पास है, एक अनमोल धरोहर की तरह
ये वही बैठक है जो कभी आने जाने वालों से रोशन हुआ करती थी, पर आज यहाँ धुल और जालों के सिवाय कुछ भी नहीं है

सामने आँगन हैवही आँगन जिसकी नालियाँ बंद कर हम होली में उसको एक तलब या pool का रूप दे देते थे। वही आँगन जो हर दिवाली रंगोली और दीयों से जगमगाता था, उसी आँगन में दिवाली की पूजा करते थे, हम सब अपनी बारी का इंतज़ार करते थे और फिर दौड़ जाते थे पटाखे बजाने, वही आँगन जहाँ कभी कितने मंडप गड़े थे, कितनी बहुंयें आयीं, बेटियां ब्याही गयीं, आज उस आँगन की फर्श पर दरारें पड़ गयीं हैं और उन दरारों में जाने कैसे कैसे पेड़ उग आयें हैं, ऊपर के कमरे में जाने वाली सीढ़ी में अब जंक लग गया है।

पीछे वाले कमरे का सामान भी कबाड़ हो रहा है, लकड़ी के दरवाज़े और खिडकियों पर दीमक लगने लगा है, फिर यादें क्यूँ अब भी ताज़ा हैं

पास ही kitchen है ….. इस रसोई में कभी 15- 16 लोगों का खाना बना करता था, और हर चीज़ में एक अलग ही स्वाद होता था, एक ही थाली में जाने कितने टुकड़ों में बाँट हमने रोटियां खायी हैं

ऊपर छत्त को जाने वाली सीढियां जाने कितनी ही जगह से टूट गयीं हैं


इसी छत्त से तीन पीढ़ियों ने पतंग उड़ना सीखा..
हम गर्मियों में शाम को पानी से छत्त को ठंडा करते थे, सबके बिस्तर जो यहीं लगाने होते थे, शायद हमे अलग कमरों में सोना तब पसंद नहीं था

तारों के नीचे रात को किस्से, कहानियां सुनते कब नींद जाती थी पता ही नहीं चलता था
और यही वो छत्त है जहाँ मैंने घरौंदे बनाना सीखा था …..

ये घर बंद रहे की वजह से ख़राब हो रहा है, पापा लोगों का कहना है की अगर इसी तरह बंद रहेगा तो एक दिन अपने आप ही गिर जायेगा

घर जरुर मिट रहा है पर इस से जुडी हर याद एक अलग ही feeling देती है और यही एहसास है जिसकी वजह से हम अलग अलग शहरों में रहते हुए भी एक दुसरे से जुड़े हुए हैं…..
और इसीलिए ये 26 रजेन्द्र नगर एक मकान या एक पता नहीं है, ये एक एहसास है, जो कभी हमारे दिलों से मिटेगा नहीं……………