मैं बहुत खुश हूँ, और मेरी ख़ुशी का राज़ ये है की नौ साल बाद मेरे दरवाज़े खुले हैं, मऊ साल बाद मेरे आँगन में फिर से बच्चों की किलकारी गूंजी है, मैं खुश हूँ की मेरे अपनों ने नौ साल बाद मेरी सुध ली है.
अरे मैं अपना परिचय देना तो भूल ही गया. मैं..... २६ राजेंद्र नगर, ज़मीन के उस टुकड़े का पता है जिस पर मैं खड़ा हूँ पर इस घर के सदस्यों लिए मैं सिर्फ एक पता नहीं अपितु एक बंधन हूँ जिस से दूर रह कर भी सब बंधे हैं, मैं वो एहसास हूँ जो कोई माने या ना माने पर दिल में बसता है, हाँ मैं मकान नहीं… एक घर हूँ.
कुछ व्यक्तिगत कारणों से नौ साल पहले मुझे बंद कर दिया गया था, तब मुझे लगा ये कुछ दिनों की बात होगी, मेरे बच्चे मेरे दरवाज़े जल्दी ही खोल देंगे पर ऐसा हुआ नहीं, कुछ दिनों का इंतज़ार पहले हफ़्तों में बदला फिर महीनों और फिर सालों में बदल गया..... मैं उम्मीद खोने लगा, मुझे लगा की मेरे दरवाज़े शायद अब कभी नहीं खुलेंगे, शायद मुझे यूँ ही किसी और के हाथों बेच दिया जायेगा।
पर एक दिन अचानक मेरे अपनों ने मेरे दरवाज़े खोले, मेरी सफाई की, मेरी दीवारों पर रंग रोगन कराया, मेरे आँगन और मंदिर में दीप जलाया।
मेरे आँगन में सब आये, भगवान श्री सत्यनारायण की का आयोजन हुआ, मेरे आँगन में शंखनाद गूंजा, सालों बाद मेरी दीवाली इस बार अँधेरी नहीं थी, मेरे आँगन में रोशनी थी, दीप जले थे, पटाखे जलाये गए थे.
मेरी उम्मीद फिर जगी है, आशा है पुराने दिन वापस आएंगे, मेरे दरवाज़े फिर हमेशा के लिए खुल जाएंगे, मेरी छत पर फिर पतंगबाज़ी के दौर होंगे, बड़ी पापड़ बनेंगे, मेरे आँगन में फिर day-night क्रिकेट होगा, उंच नीच और stapu खेला जाएगा, मेरी रसोई का चूल्हा फिर जलेगा और बच्चों के लिए एक ही थाली में भोजन परोसा जाएगा, मेरी बैठक में मेहमानों का आना जाना फिर पहले की तरह होगा, मैं जानता हूँ इतनी जल्दी तो ये सब न हो पायेगा पर हाँ उम्मीद है की एक दिन सब कुछ फिर पहले जैसा हो जायेगा, गुज़रा हुआ वक़्त लौट आएगा।
हाँ........ थोड़ा बदले हुए रूप में.
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